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Right To Repair क्‍या है राइट टू रिपेयर जो ग्राहकों को करेगा सशक्‍त?

Vivek Maheshwari
Last updated: March 31, 2024 11:07 am
Vivek Maheshwari
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12 Min Read
Right To Repair क्‍या है राइट टू रिपेयर जो ग्राहकों को करेगा सशक्‍त?

Right To Repair : आज के तेजी से बदलते युग में, हमारी जिंदगियां इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के आसपास घूमने लगी हैं। चाहे वह स्मार्टफोन हो या लैपटॉप, इन उपकरणों का उपयोग हमारे रोजमर्रा के कामों में बेहद आवश्यक हो गया है। लेकिन, कभी-कभी जब ये डिवाइस खराब हो जाते हैं तो हमें बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

Contents
Right To RepairRight To Repair: उपभोक्ताओं को अधिकार और निर्माताओं पर नियंत्रण देने की पहल।Right To Repair: जानिए कैसे यह नियम बचाएगा आपके पैसे और पर्यावरण को।ये चार सेक्टर किए गए हैं शामिलग्राहकों को ठगी का शिकार होने से बचाएगी ये पहलRight To Repair: ई-कचरे को कम करने और स्थायी उपभोग को बढ़ावा देने वाली पहल।राइट टू रिपेयर के फायदे (Benefits of Right to Repair)Right To Repair के लिए तय किए क्षेत्र और उत्‍पाद

अक्सर हम सोचते हैं कि इन्हें सिर्फ निर्माता कंपनी ही ठीक कर सकती है, लेकिन क्या यही एकमात्र उपाय है? इसी उलझन का हल लेकर आता है ‘Right To Repair’ का सिद्धांत। यह सिद्धांत हमें यह अधिकार देता है कि हम अपने उपकरणों को स्वयं ठीक कर सकें या अपनी पसंद के सेवा प्रदाता से इसे ठीक करवा सकें। इससे उपभोक्ताओं को अधिक लचीलापन और विकल्प मिलते हैं, साथ ही यह पर्यावरण के लिए भी बेहतर है क्योंकि इससे ई-कचरे में कमी आती है।

Right To Repair क्‍या है राइट टू रिपेयर जो ग्राहकों को करेगा सशक्‍त?

Right To Repair

आधुनिक जीवनशैली में टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और निजी कारें हमारी दैनिक जरूरतों का अभिन्न अंग बन गई हैं। देश की आर्थिक प्रगति और लोगों की बढ़ती आय के साथ, ये उत्पाद अधिक से अधिक घरों में अपनी जगह बना रहे हैं। लोग इन्हें बड़े चाव से खरीदते हैं, लेकिन कई बार खरीदने के कुछ ही समय बाद ये उत्पाद खराब हो जाते हैं। ऐसे में, दुकानदार अक्सर मदद करने में असमर्थ होते हैं और ग्राहकों को सर्विस सेंटर जाने की सलाह देते हैं।

इसी समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है ‘Right To Repair’ सिद्धांत। यह सिद्धांत ग्राहकों को अधिकार देता है कि वे अपने उपकरणों की मरम्मत स्वयं कर सकें या किसी तीसरे पक्ष की सेवा का उपयोग करें, जिससे उपकरणों की लंबी उम्र और उनके बेहतर रख-रखाव में मदद मिले। यह न केवल ग्राहकों को सर्विस सेंटरों के चक्कर काटने से बचाता है, बल्कि ई-कचरे को कम करके पर्यावरण की रक्षा में भी योगदान देता है। इस प्रकार, ‘Right To Repair’ हमें अपने उपकरणों के प्रति अधिक सशक्त और जिम्मेदार बनाता है।

Right To Repair: उपभोक्ताओं को अधिकार और निर्माताओं पर नियंत्रण देने की पहल।

ग्राहकों की वास्तविक समस्या तब शुरू होती है जब उन्हें अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत के लिए बार-बार सर्विस सेंटरों के चक्कर काटने पड़ते हैं। ऐसे में, कई बार ग्राहक इतने निराश हो जाते हैं कि उन्हें अपने पुराने उपकरणों को त्यागकर नया खरीदना ही बेहतर लगता है। स्पेयर पार्ट्स की कीमतों की अनिश्चितता भी इस परेशानी को और बढ़ा देती है, क्योंकि सर्विस सेंटर्स अक्सर मरम्मत और स्पेयर पार्ट्स के लिए अत्यधिक राशि वसूलते हैं। इससे ग्राहकों को लगता है कि रिपेयर करवाने की लागत में नया उपकरण खरीद लेना ज्यादा समझदारी है। भारत में बढ़ते ई-कचरे के पीछे यह भी एक प्रमुख कारण है।

Right To Repair क्‍या है राइट टू रिपेयर जो ग्राहकों को करेगा सशक्‍त?

ग्राहकों की बढ़ती मुश्किलें और ई-कचरे की बढ़ती समस्या के समाधान के लिए, सरकार ने एक नई पहल की है। ‘राइट टू रिपेयर’ फ्रेमवर्क (Right to Repair Act India) के माध्यम से, सरकार ने चार प्रमुख सेक्टरों से जुड़ी विनिर्माण कंपनियों को अपने उत्पादों और उनमें प्रयोग होने वाले पुर्जों की विस्तृत जानकारी साझा करने और उनके मरम्मत सुविधाओं के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया है। यह जानकारी ‘Right To Repair’ पोर्टल पर उपलब्ध कराई जाएगी, ताकि उपभोक्ता आसानी से अपने उपकरणों की मरम्मत करवा सकें और अनावश्यक खर्च और ई-कचरे की समस्या को कम किया जा सके।

Right To Repair: जानिए कैसे यह नियम बचाएगा आपके पैसे और पर्यावरण को।

आज के समय में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हमारी जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं। चाहे वो स्मार्टफोन हो, लैपटॉप, टीवी या फिर कोई और डिवाइस, हमारा दिन-प्रतिदिन का काम इन पर निर्भर करता है। मगर जब ये उपकरण खराब हो जाते हैं, तो कई बार हमें लगता है कि निर्माता से इन्हें ठीक कराने के अलावा हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है।

ऐसे में ‘Right To Repair’ का संकल्पना हमारे सामने आता है। इस पहल के तहत सरकार ने चार प्रमुख सेक्टरों की मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को ‘राइट टू रिपेयर’ पोर्टल पर अपने उत्पादों और उनके पार्ट्स की पूर्ण जानकारी साझा करने के लिए कहा है, जिससे उपभोक्ताओं को अपने उपकरणों की मरम्मत या रखरखाव उचित दर पर करवाने में सहायता मिल सके। इससे न केवल ग्राहकों की समस्याओं का समाधान होगा बल्कि ई-कचरे की समस्या में भी कमी आएगी।

Right To Repair क्‍या है राइट टू रिपेयर जो ग्राहकों को करेगा सशक्‍त?

ये चार सेक्टर किए गए हैं शामिल

‘Right To Repair’ नीति के अंतर्गत जिन चार प्रमुख क्षेत्रों को आवरण में लिया गया है, वे हैं: फार्मिंग उपकरण, मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और ऑटोमोबाइल उपकरण। इसमें फार्मिंग उपकरण के अंतर्गत पानी के पंप, ट्रैक्टर के पार्ट्स, हार्वेस्टर आदि आते हैं। वहीं, मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स में स्मार्टफोन, लैपटॉप, डेटा स्टोरेज सर्वर, प्रिंटर सहित हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर से संबंधित उत्पाद शामिल हैं। कंज्यूमर ड्यूरेबल्स में टेलीविज़न, रेफ्रिजरेटर, गीजर, मिक्सर-ग्राइंडर, चिमनी जैसे घरेलू उपकरण आते हैं। अंत में, ऑटोमोबाइल्स क्षेत्र में यात्री वाहन, कार, दोपहिया वाहन और इलेक्ट्रिक वाहनों को इस नीति के तहत शामिल किया गया है।

ग्राहकों को ठगी का शिकार होने से बचाएगी ये पहल

केंद्र सरकार ‘Right To Repair’ नीति के जरिए ग्राहकों को ठगी से बचाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। इस पहल के माध्यम से, ग्राहकों को अपने उपकरणों की मरम्मत से संबंधित सही और पारदर्शी जानकारी प्राप्त होगी, जिससे वे मरम्मत के अनुचित खर्च और ठगी से बच सकेंगे। कई मामलों में, ग्राहकों के पास खराबी आने पर सही जानकारी का अभाव होता है,

जिसके चलते रिपेयर करने वाले अधिक कीमत की मांग करते हैं और ग्राहक को ठगने का शिकार बना देते हैं। इसकी मुख्य वजह रिपेयर में इस्तेमाल होने वाले स्पेयर पार्ट्स की कीमतें और उनके रिपेयर के खर्चे की जानकारी का स्पष्ट न होना है। कई बार, सर्विस सेंटर या बाहरी मैकेनिक यह सलाह दे देते हैं कि खराब उत्पाद की मरम्मत कराने की बजाय नया उत्पाद खरीद लेना बेहतर है, जबकि मरम्मत के बाद भी उत्पाद को लंबे समय तक इस्तेमाल में लाया जा सकता है। ‘Right To Repair’ नीति इन सभी समस्याओं का समाधान प्रदान करने के लिए लाई गई है।

Right To Repair: ई-कचरे को कम करने और स्थायी उपभोग को बढ़ावा देने वाली पहल।

ई-कचरे के नियंत्रण की दिशा में सरकार द्वारा ‘Right To Repair’ पहल को प्रोत्साहित करना एक सार्थक कदम है। इस पहल के अंतर्गत, ‘Right To Repair’ पोर्टल पर उत्पादों और उनके पार्ट्स की विस्तृत जानकारी और कीमतों का खुलासा किया जाएगा। इस फ्रेमवर्क की मदद से ग्राहकों को उनके खरीदे गए सामान के बारे में अधिक पारदर्शिता मिलेगी, और वे सजग निर्णय ले सकेंगे। इस पोर्टल पर कंपनियां न केवल अपने अधिकृत सेवा केंद्रों की, बल्कि तृतीय-पक्ष सेवा केंद्रों की जानकारी भी प्रदान करेंगी। इसके परिणामस्वरूप, उपभोक्ताओं को नई वस्तुओं की खरीद के बजाय, पुराने सामान को मरम्मत कराकर दोबारा उपयोग करने की प्रेरणा मिलेगी, जिससे न केवल उनके धन की बचत होगी बल्कि ई-कचरे का उत्पादन भी कम होगा।

Right To Repair क्‍या है राइट टू रिपेयर जो ग्राहकों को करेगा सशक्‍त?

राइट टू रिपेयर के फायदे (Benefits of Right to Repair)

  • ‘राइट टू रिपेयर’ कानून से उपकरणों की मरम्मत संबंधी लागत में कमी आने की संभावना है, जिससे उपभोक्ताओं को उनके इलेक्ट्रॉनिक सामानों के प्रति अधिकार और नियंत्रण प्राप्त होगा। इस नीति के अनुसार, उपकरणों के निर्माता को अपने उत्पादों के रिपेयर मैनुअल्स, टूल्स, और जरूरी स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध कराने होंगे, जिससे उपभोक्ता स्वयं या अन्य थर्ड-पार्टी सेवा प्रदाता की मदद से अपने उपकरणों की मरम्मत करा सकें। इससे उपभोक्ताओं को न केवल वित्तीय लाभ होगा बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी लाभकारी होगा, क्योंकि यह ई-कचरे की मात्रा को कम करने में सहायक होगा।
  • ‘राइट टू रिपेयर’ नीति से स्वतंत्र मरम्मत केंद्रों के लिए नई रोजगार संभावनाएं खुल सकती हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती है और तकनीकी कौशल के विकास को प्रोत्साहन मिल सकता है। इस नीति के तहत, निर्माताओं को अपने उत्पादों के मरम्मत मैनुअल्स, आवश्यक टूल्स, और स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध कराने होंगे, जिससे स्वतंत्र मरम्मत व्यवसाय उन उपकरणों की मरम्मत सेवाएं प्रदान कर सकें। इससे न केवल उपभोक्ताओं के लिए मरम्मत विकल्पों में वृद्धि होगी बल्कि स्थानीय बाजार में भी नई जीवंतता आएगी।
  • अक्सर, खराब हो चुके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बेकार समझकर कचरे में डाल दिया जाता है, जिससे हमारे पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ता है। ‘Right To Repair‘ नीति इस समस्या का एक समाधान प्रदान करती है। यह नीति उपभोक्ताओं को उनके टूटे हुए उपकरणों की मरम्मत कराने का अधिकार देती है, जिससे उपकरणों की जीवन अवधि बढ़ सकती है और ई-कचरे की मात्रा में कमी आ सकती है। इस प्रकार, ‘Right To Repair’ नीति मरम्मत को बढ़ावा देकर और कचरे को कम करके पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान देती है, जिससे हमारी पृथ्वी को और अधिक हरित और स्वस्थ बनाया जा सकता है।

Right To Repair के लिए तय किए क्षेत्र और उत्‍पाद

क्षेत्र उत्‍पाद
खेती के उपकरण – ट्रैक्‍टर के स्‍पेयर पार्ट्स- हार्वेस्टर

– वाटर पंप मोटर

मोबाइल/इलेक्‍ट्रॉनिक डिस्‍प्‍ले/ डाटा स्‍टोरेज उपकरण – मोबाइल- टैबलेट

– वायरलेस हेडफोन और ईयर बड्स

– लैपटॉप

– यूनिवर्सल चार्जिंग पोर्ट/केबल

– बैटरी

– सर्वर व डेटा स्‍टोरेज

– हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर

– प्रिंटर

कंज्‍यूमर ड्यूरेबल – वाटर प्यूरिफायर- वॉशिंग मशीन

– रेफ्रिजरेटर

– टेलीविजन

– इंटिग्रेटेड/यूनिवर्सल रिमोट

– डिशवॉशर

– माइक्रोवेव

– एयर कंडिशनर

– गीजर

– इलेक्ट्रिक केतली

– इंडक्‍शन चूल्‍हे

– मिक्‍सर ग्राइंडर

– इलेक्‍ट्र‍िक चिमनी

ऑटोमोबाइल उपकरण – यात्री वाहन- दोपहिया वाहन

– इलेक्‍ट्रिक वाहन

– तिपहिया वाहन

– कारें

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