Respiratory Health सर्दियों की विदाई के साथ ही बसंत ऋतु ने अपनी खूबसूरत छटा बिखेरनी शुरू कर दी है। इस खूबसूरती भरे मौसम में, जहां एक ओर प्रकृति अपने विविध रंगों से हमें मोहित करती है, वहीं तापमान में होने वाले अचानक बदलाव से हमारे श्वसन तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इस मौसम में, श्वसन संबंधी समस्याएं जैसे कि एलर्जी, अस्थमा और अन्य श्वास संबंधी विकार अक्सर बढ़ जाते हैं। ऐसे में, हमारे श्वसन तंत्र का ध्यान रखना और उसे स्वस्थ रखना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
Respiratory Health बदलते मौसम में अक्सर सब हो जाते है खासी-ज़ुखाम का शिकार! यह आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां हैं मददगार!
आयुर्वेद, जो कि एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है, इस संदर्भ में हमारी बहुत मदद कर सकता है। आयुर्वेद में वर्णित विभिन्न जड़ी-बूटियाँ और उपचार विधियाँ हमारे श्वसन तंत्र को मजबूत और स्वस्थ रखने में सहायक होती हैं। उदाहरण के लिए, तुलसी, पिप्पली, अदरक, और हल्दी जैसी जड़ी-बूटियाँ श्वसन प्रक्रिया को सुगम बनाने, एलर्जी और संक्रमण से लड़ने और श्वास नलिकाओं को साफ रखने में काफी कारगर सिद्ध होती हैं। Click Here
इसके अलावा, आयुर्वेदिक उपचारों में धूमपान (हर्बल धूनी), नस्य (नासिका मार्ग से औषधि का सेवन) और वाष्प सेवन जैसी प्रक्रियाएं भी शामिल हैं, जो श्वसन पथ को साफ करने और मजबूती प्रदान करने में मदद करती हैं। ये उपचार न केवल श्वसन तंत्र को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं, बल्कि ये आपके Respiratory Health और इम्युनिटी को भी बढ़ाते हैं।
बसंत ऋतु के इस खूबसूरत समय का आनंद लेते हुए, हमें अपने श्वसन तंत्र की देखभाल करने के लिए आयुर्वेदिक ज्ञान का उपयोग करना चाहिए। इस तरह, हम न केवल इस मौसम की सुंदरता का आनंद उठा सकेंगे, बल्कि एक स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली का नेतृत्व भी कर सकेंगे। याद रखें, स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है।
कोविड-19 के प्रकोप से लेकर लगातार बढ़ते प्रदूषण के स्तर तक, ऐसे अनेक कारण हैं जो हमारे श्वसन तंत्र पर गहरे और अवांछित प्रभाव डालते हैं। फेफड़े, जो कि हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं, इन कारकों के प्रभाव से संक्रमित हो सकते हैं और कुछ मामलों में तो इससे उनकी कार्यक्षमता भी प्रभावित हो सकती है।
मौसम में आने वाले बदलाव के साथ भी श्वसन संबंधी समस्याएँ जैसे कि खांसी, सर्दी और बलगम की समस्या में वृद्धि हो सकती है, जो हमें और भी अधिक असुविधा में डाल सकती हैं। इसलिए, इन सभी कारणों को देखते हुए, अपने श्वसन तंत्र की देखभाल करना और इसे Respiratory Health स्वस्थ रखना अत्यंत जरूरी हो जाता है।
श्वसन तंत्र की देखभाल और स्वास्थ्य में आयुर्वेद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आयुर्वेद में फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ावा देने और उन्हें मजबूत बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों का उल्लेख मिलता है। इन जड़ी-बूटियों का उपयोग करके, हम फेफड़ों को न केवल Respiratory Health स्वस्थ रख सकते हैं, बल्कि श्वसन संबंधी विभिन्न समस्याओं से बचाव भी कर सकते हैं।
आयुर्वेद में फेफड़ों के लिए कुछ प्रमुख जड़ी-बूटियां हैं जैसे कि तुलसी, अदरक, पिप्पली, हल्दी और वासा। तुलसी के पत्तों में एंटीवायरल और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो श्वसन संक्रमणों से लड़ने में सहायक होते हैं। अदरक में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो फेफड़ों की सूजन को कम करने में मदद करते हैं।
पिप्पली (लॉन्ग पेपर) एक शक्तिशाली श्वसन उत्तेजक है, जो श्वास नली को साफ करने और श्वसन क्षमता को बढ़ाने में उपयोगी है। हल्दी में कर्क्यूमिन होता है जो एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइन्फ्लेमेटरी प्रभाव प्रदान करता है, इसलिए यह फेफड़ों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है। Respiratory Health वासा (अडूसा) श्वसन पथ की सूजन और खांसी को शांत करने में अत्यंत प्रभावी है।
Respiratory Health फेफड़े को मजबूत बनाए रखने वाली जड़ी बूटियां-
मूलेठी
आयुर्वेद में मुलैठी अपने मीठे और ठंडे गुणों के कारण जाना जाती है। इसका यही गुण रेस्पिरेटरी सिस्टम में होने वाले संक्रमण से राहत दिलाने में मदद करती है। ये सर्दी, जुकाम, खांसी और गले के तकलीफ में भी आराम दिलाती है। ये गले में जमा बलगम को भी निकालने में मदद करती है।
तुलसी
औषधिय गुणों से भरपूर तुलसी रेस्पिरेटरी सिस्टम संबंधित परेशानियों को खत्म करने में सक्षम होती है। यह सर्दी, जुकाम, खांसी जैसी समस्याओं को प्रभावी तरीकों से दूर करने में मदद करती है। इतना ही नहीं, तुलसी हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाए रखने में भी मदद करती है, जिससे इन्फेक्शन का खतरा कम होता है।
सोंठ (सूखा अदरक)
सोंठ जो कि सूखा अदरक होता है, सूखने के बाद पाउडर के रूप में काढ़ा बनाकर या फिर शहद के साथ लेने से रेस्पिरेटरी सिस्टम संबंधित सभी परेशानियों में राहत दिलाता है। यह संक्रमित फेफड़ों में होने वाली सूजन को कम करने में भी मदद करता है, जिससे गले की खराश और खांसी की समस्या से भी निजात मिलता है ।
पिप्पली ( पीपर)
पिप्प्ली को पीसकर, इसके चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर लगातर एक हफ्ते तक सेवन करने से, सर्दी जुकाम और खांसी की समस्या से छुटकारा मिलता है। इतना ही नहीं, फेफड़े के इन्फेक्शन में इसे खाने से काफी हद तक राहत मिल सकती है। इसलिए यह रेस्पिरेटरी सिस्टम के लिए बेहद लाभदायत मानी जाती है।
बिभितकी
त्रिफला चूर्ण में से एक जड़ी बूटी है बहेड़ा, जिसे बिभितकी भी कहते हैं। यह हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम को दुरुस्त करने वाली एक बेहद कारगर आयुर्वेदिक औषधी है। यह गले की सूजन को कम करने में मदद करती है और सर्दी खांसी जुकाम में आराम दिलाती है।