RBI MPC Meeting : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक हर दो महीने में एक बार आयोजित की जाती है। इस बैठक का नेतृत्व रिजर्व बैंक के गवर्नर के हाथों में होता है, जहां समिति के सदस्य मिलकर देश की मौद्रिक नीतियों, विशेष रूप से रेपो रेट को लेकर कई महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। इन निर्णयों का सीधा प्रभाव देश की आर्थिक स्थिति और आम नागरिकों के जीवन पर पड़ता है। इस बैठक के फैसले न केवल बैंकिंग क्षेत्र को प्रभावित करते हैं, बल्कि इसका असर बचत, निवेश और उधार लेने की लागत पर भी पड़ता है, जिससे आम जनता की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं।
RBI MPC Meeting: जानिए हर दो महीने एमपीसी बैठक के पीछे का कारण और Repo Rate परिवर्तन की जनता पर प्रभाव
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली से खास खबर: RBI मौद्रिक नीति की ताजा जानकारी: वित्त वर्ष 2024-25 (FY25) के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank Of India) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (RBI MPC Meet) की तीन दिन की बैठक आज से प्रारंभ हो रही है। इस बैठक में किए गए निर्णयों की घोषणा 5 अप्रैल 2024 को RBI के गवर्नर के माध्यम से की जाएगी।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समीक्षा RBI MPC Meeting बैठक हर दो महीने में एक बार आयोजित की जाती है। वित्त वर्ष 2024-25 की यह पहली बैठक है, जहां समिति के सदस्य देश की आर्थिक नीतियों से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। इन निर्णयों का प्रभाव सीधे तौर पर आम जनता पर पड़ता है, जिसमें ब्याज दरों, ऋण नीतियों, और आर्थिक विकास के दिशा-निर्देश शामिल हो सकते हैं।
RBI MPC Meeting इनसाइट्स: आपके लोन और बचत पर कैसे प्रभाव डालती है रेपो रेट में होने वाली हर बदलाव
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की RBI MPC Meeting बैठक में, आम लोगों की सबसे ज्यादा रुचि रेपो रेट में किसी भी तरह के परिवर्तन पर रहती है। रेपो रेट में होने वाली कोई भी वृद्धि या कमी का प्रभाव सीधे तौर पर जनता की जेब पर पड़ता है, चाहे वह लोन की EMI हो या बचत पर मिलने वाला ब्याज। इसलिए, यह प्रश्न बहुत सारे लोगों के मन में उठता है कि आखिर क्यों हर दो महीने में यह बैठक RBI MPC Meeting आयोजित की जाती है और इसका सीधा संबंध आम जनता से क्या है?
RBI MPC Meeting इस बैठक का उद्देश्य देश की आर्थिक स्थिति, मुद्रास्फीति की दर, और अन्य वित्तीय संकेतकों के आधार पर मौद्रिक नीतियों को समय-समय पर समीक्षा करना और उनमें आवश्यक संशोधन करना है। इससे देश की आर्थिक वृद्धि को स्थिर रखने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है, जिसका सीधा असर आम जनता की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है।
क्यों होती है हर दो महीने में एमपीसी बैठक?
देश में महंगाई की दर में उतार-चढ़ाव एक सामान्य घटना है। जब कभी महंगाई बढ़ती है, तो बाजार में कुछ विशेष वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि हो जाती है। ऐसी परिस्थितियों में, मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) समय-समय पर मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठकें आयोजित करता है। इन बैठकों RBI MPC Meeting को एमपीसी मीटिंग के नाम से जाना जाता है।
इस मीटिंग में, समिति के सदस्य रेपो रेट में संभावित बदलाव पर गहन चर्चा करते हैं। यह चर्चा आमतौर पर उन परिवर्तनों के आधार पर होती है जो महंगाई की दर को प्रभावित कर सकते हैं और इस तरह से देश की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करने में मदद करते हैं।
मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक तीन दिनों तक चलती है, और इसके समापन पर तीसरे दिन, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर द्वारा बैठक में लिए गए निर्णयों की घोषणा की जाती है। विधियों के अनुसार, केंद्रीय बैंक के लिए प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कम से कम चार बार MPC बैठक RBI MPC Meeting आयोजित करना अनिवार्य होता है। यह बैठकें कब और किस अंतराल में होंगी, इसका निर्णय समिति द्वारा लिया जाता है, जिससे कि मौद्रिक नीतियों को देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति और उसकी आवश्यकताओं के अनुसार ढाला जा सके।
यदि किसी वर्ष में मौद्रिक नीति समिति (MPC) चार से अधिक बार RBI MPC Meeting बैठक करने का निर्णय लेती है, तो इसके लिए उसे एक विशेष नोटिफिकेशन जारी करना आवश्यक होता है। इस नोटिफिकेशन के माध्यम से, समिति आम जनता को यह सूचित करती है कि वह किस-किस तारीख को MPC बैठक आयोजित करेगी। इस प्रक्रिया से समिति की पारदर्शिता और संचार की प्रभावशीलता सुनिश्चित होती है, और यह आम जनता को भी उनकी मौद्रिक नीतियों और आर्थिक दिशा-निर्देशों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है।
रेपो रेट में क्यों होता है बदलाव
देश में महंगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक, अर्थात भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), रेपो रेट में परिवर्तन करता है। रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर RBI अन्य वाणिज्यिक बैंकों को धन उधार देता है।
जब देश में महंगाई की दर अधिक हो जाती है, तब अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को कम करने के लिए RBI रेपो रेट में वृद्धि कर देता है। इससे बैंकों के लिए RBI से धन उधार लेना महंगा हो जाता है, जिसका परिणाम स्वरूप वे भी ग्राहकों को उधार देने पर अधिक ब्याज दर वसूलते हैं, इस प्रकार मुद्रा का प्रवाह कम हो जाता है। दूसरी ओर, यदि देश की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, तब RBI रेपो रेट में कमी करके मुद्रा प्रवाह को बढ़ा देता है, जिससे अर्थव्यवस्था में निवेश और खर्च में वृद्धि होती है।
फरवरी 2023 में, RBI ने रेपो रेट को बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया था। उसके बाद से, रेपो रेट में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया गया है।
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